शनिवार, 6 अप्रैल 2013

tu jo aa jaye

तू जो आ जाये ..तो  इस घर को संवरता देखूं ...
एक मुद्दत से जो वीरां है .. वो बसता देखूं ...
ख्वाब बन कर तू बरसता रहे ..शबनम शबनम (मूल- ख्वाब बन कर तू बहाता रहे जन्नत के झरने ..)
और बस मैं इसी मौसम को निखरता देखूं ...
जिससे मिलना ही नहीं उससे मोहब्बत कैसी ..
सोचता जाऊं ... मगर दिल में उतरता देखूं .....
दिल गया था तो ये आँखें भी कोई ले जाता ....
मैं फ़क़त एक ही तस्वीर कहाँ तक देखूं ....
चंद लम्हे जो तेरे इश्क़ के मिल जाते हैं ..
इन्ही लम्हों को मैं सदियों में बदलता देखूं ...
तू जो आ जाये ..तो  इस घर को संवरता देखूं ...
एक मुद्दत से जो वीरां है .. वो बसता देखूं ...
-फैज़ल