बुधवार, 26 अप्रैल 2017

कुत्ता इंस्पेक्टर -

कुत्ता इंस्पेक्टर -बहुत पहले डैडी ने मुझे एक कहानी सुनायी थी "कुत्ता इंस्पेक्टर", आज फिर याद आ रही वो कहानी, पता नहीं क्यों?
एक सज्जन एक नगर के बड़े अधिकारी बन गये, अपने कार्यालय में जो वो करते थे सो करते थे, मगर सुबह शाम उनके घर पर भी भीड़ लगी रहती थी. उनकी श्रीमती देखती रहती थीं कि उस भीड़ में कई लोग उनके भर्तार के चरण पकड़ कर काम मांगते रहते थे, कोई अपने लिए तो कोई बेटे/बिटिया के लिए, भतीजे/भतीजी केलिए और कुछ नहीं तो दामाद या साले के लिए। एक दिन जब उनसे नहीं रहा गया तो उन्होंने रसोई में हाथ बंटा रहे अपने खानसामे से (जो कि असल में साहब के दफ्तर का दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी था) पूछ ही लिया कि क्यों इतने सारे लोग रोज़ साहब के पास आते हैं?
खानसामे ने जवाब दिया "साहब बहुत दयालु हैं, कई लोग का कुछ न कुछ भला कर ही देते हैं, कइयों को काम पर लगा दिए हैं."
श्रीमती जी के कान खड़े हो गये, उनका एक निकम्मा, आवारा भाई था,  समझ जाइये।
साहब ने अपने दफ्तर में अपने सामने खड़े साले महोदय की ओर इशारा करते हुए अपने एक मुंह लगे मातहत से पूछा "इनका क्या कर सकते हैं?"
घाघ मातहत समझ गया कि खुदा की खुदायी एक तरफ.......  कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा
उसने साहब को बताया कि इन दिनों नगर में आवारा कुत्तों की संख्या काफी बढ़ी हुई है और अपने पास उनको नियंत्रित करने का तरीका और बजट भी आ चुका है।
साले साहब कुत्ता इंस्पेक्टर बना दिए गए, काम सौंपा गया, आवारा कुत्तों को पहचान के उनको ख़त्म करने का।  इस काम के लिये जरूरी ज़हर बुझे पेड़ों / रोटियों की व्यवस्था के साथ मरे हुए कुत्तों के निपटारे का तरीका समझा कर उन्हें काम पर लग जाने का आदेश दे दिया गया, इस ताक़ीद के साथ कि वो एक माह बाद आयें और कितना काम किया ये बता कर अपनी तनख्वाह ले जाएँ।
एक माह बाद कुत्ता इंस्पेक्टर जी साहब के सामने सीना तान कर खड़े हो गए।  साहब ने पूछा "क्या किये"?
जवाब आया कि "जीजाजी मैंने पूरी ईमानदारी और मेहनत से काम किया और इस नगर के एक एक आवारा कुत्ते को पकड़ कर ठिकाने लगा दिया है, आज नगर में एक भी आवारा कुत्ता नहीं है".
साहब अवाक रह गये, सर पकड़ कर बैठ गये और मातहत को इशारा किया कि इसको वेतन दे कर विदा करो।  मातहत ने साले महोदय को उनका वेतन दिया और कहा कि कल से काम पर आने की जरूरत नहीं.....
पहली तनख्वाह हाथ में लिये साले साहब का फूलता सीना ये सुन कर अचानक पंचर हो गया, उसने पूछा क्यों ?
तब उसके जीजा के मातहत ने उसे समझाया कि जब नगर में आवारा कुत्ते ही नहीं बचे तो ऐसे में कुत्ता इंस्पेक्टर रखने पर साहब की बड़ी बदनामी होगी सो अभी जाओ  और हाँ खाली मत बैठना, अगल बगल की बस्तियों से पिल्लों को उठा कर इस नगर में उन्हें पलने दो। जब उनकी संख्या बढ़ जाए तो फिर इस दफ्तर में आ जाना। पुराने अनुभव के आधार पर तुम्हें फिर कुत्ता इंस्पेक्टर बना दिया जायेगा और हाँ मेरे बाप अगली बार सबको एक साथ मत ख़त्म कर देना। कुत्ता इंस्पेक्टर बने रहना है तो कुत्तों को मारने के बजाय उनको पालना सीखों। (कमल दुबे).
पुनश्च- डैडी की सुनायी इस कहानी का नक्सल, कश्मीर अथवा भारत भर में न मिटने वालों आंदोलनों से कोई मतलब नहीं है।