शनिवार, 3 जून 2017

ताडोबा, एक दिन अचानक

30 मई की सुबह साढ़े 11 बजे नवीन वाहिनीपति जी का फ़ोन आता है, सीधे पूछते हैं "भैया दो चार दिन कामधाम छोड़ कर निकल सकते हैं क्या"? मैंने पूछा कहाँ चलना है, कब चलना है "? जवाब आया ताड़ोबा, अभी दो बजे निकल लेते हैं, खर्चा थोड़ा ज्यादा होगा और हाँ सत्या भैया तैयार हैं, बस अपन तीनो .....  मैं सोच में पड़ गया? नवीन को याद दिलाया कि "मोरा" तूफ़ान बंगाल की खाड़ी में उत्पात मचा रहा है उसके असर से आज शाम से जम कर बारिश हो सकती है? नवीन बोले ताडोबा तक असर नहीं होगा, मैंने कहा फिर तो चलो ..... और दोपहर दो बजे के बाद कारवां निकल पड़ा। जिन मित्रों के घर रास्ते में पड़े उनसे मिलते,  उनके साथ चाय नाश्ता करते आराम से चलते रहे। शाम ढलते-ढलते ऐसी बारिश शुरू हुई कि क्या कहने, मानसून में भी ऐसी बारिश नहीं दिखती? रास्ता दिखना बंद हो गया, फोर लेन में गाड़ी की चाल ख़तम हो गयी, उस पर गाड़ी के डिपर का एक बल्ब भी चला गया, टाटा स्टॉर्म का बल्ब था, छत्तीसगढ़ की सीमा के अंदर से उसकी तलाश शुरू हुई तो दो घंटे बाद भंडारा के पहले सकोली में ख़त्म हुई, वहाँ एक सरदारजी ने पांच मिनट में बल्ब बदल दिया, तब तक रात के दस बज चुके थे. रह रह कर घनघोर बारिश में दो बजे रात ताडोबा में दाखिल हुए. काफी जद्दोजहद के बाद MTDC के रेसार्ट में कमरा मिला और साढ़े तीन बजे बिस्तर पकडे। सुबह पांच बजे उठे तो फिर बारिश, सुबह की सफारी का सत्यानाश, हम वापस रूम में जाकर सो गए.  फिर दोपहर की सफारी के लिये जूझना पड़ा, किस्मत अच्छी थी.
तीन बजे गाइड राहुल और ड्राइवर सिकंदर अपनी 7752 में हमें मोहरली से जंगल की ओर ले चले. पहले ही मोड़ पर गाड़ी रुक गयी, हमलोग अपने अपने कैमरे पकड़ कर तैयार हो गए, पूछे क्या है? सिकंदर ने बायीं ओर इशारा करते हुए कहा स्पॉटेड डियर और गौर का झुण्ड....... हम तीनो ने हँसते हुए अपने कैमरे नीचे किये और उनसे कहा कि भाइयों सिर्फ शेर पर ही ध्यान रखो. गाइड राहुल ने कहा ठीक है मैं समझ गया और फिर जिप्सी तेज़ी से दौड़ने लगी. राहुल अगली सीट पर खड़े होकर हमें ताडोबा के बारे में बताने लगे, शेर, भालू, तेंदुए, गौर, डियर और पंछियों की संख्या आदि-आदि तभी एक नीलकंठ ने सामने से उडान भरी और गाड़ी में ब्रेक लगा सिकंदर उसकी ओर इशारा कर ही रहा था कि हमसब एक साथ चिल्लाये "अरे आगे बढ़".
राहुल और सिकंदर ने आपस में मराठी में गुटरगूं की और हमें बताया कि हम पहले सबसे बड़े और बुजुर्ग शेर "बाग डो" को स्पॉट करेंगे फिर माया और माधुरी को खोजेंगे। तलाश शुरू हुई, वो जगह तय करते और वहाँ गाड़ी आगे-पीछे, ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं होती, थोड़ी देर रूकती फिर तेजी से दौड़ पड़ती। बीच-बीच में सांभर और पंछियों के लिए भी रुक जाती लेकिन शेर तो क्या उनके पंजों के निशान भी नहीं दिखे, उसपर हलकी बारिश भी मिल रही थी. रास्ते में दूसरी गाड़ियां मिलतीं तो उनसे पूछताछ होती "कुछ दिखा"? जवाब नाकारात्मक ही होते। धीरे-धीरे शाम हो चली थी. उम्मीदें ख़त्म हो रही थीं. खुद से निराश राहुल ने कहा कि बारिश ने काम बिगाड़ दिया है. हम भी पंछी,मोर और जंगली कुत्ते ही खींचने लगे। फिर राहुल ने एलान किया कि हम अब अपने आखिरी मुकाम अंबेझरी जा रहे हैं. आगे बढे तो देखा कि एक इलाके को घेर कर तमाम सफारी गाड़ियां खड़ी हैं, पूछने पर पता चला कि सांभर डियर की कॉल है आस-पास शेर हो सकता है? हमारी गाड़ी भी लाइन में खड़ी हो गयी. कुछ देर इंतज़ार करने के बाद जब कोई हलचल नहीं दिखी तो राहुल ने समय का हवाला देकर गाड़ी आगे बढ़ाने को कहा और हमारी गाड़ी एक झील के किनारे खड़ी हो गयी, राहुल ने कहा कि आधे घंटे में वापस गेट पहुँचाना है सो थोड़ी देर यहां आस-पास ध्यान से देखिये और पंछियों की तस्वीरें लीजिये। हमारा धैर्य जवाब दे गया हम तीनो उन पर बरस पड़े माधुरी के इलाके में जा रहे हैं बोलकर फिर चिड़िया दिखाने लगे? उन्होंने कहा माधुरी का ही इलाका है अब वो नहीं दिख रही है तो क्या करें?
अब हम अनुनय-विनय पर आ गए और उनसे विनती की कि हमें नहीं देखना चिड़िया ......  बचे समय में जंगल के अंदर ही चलो. उन्होंने बात मान ली और फिर झील के साथ लगे जंगल में गाड़ी दौड़ा दी। थोड़ी दूर चलते ही जंगल में घुसी एक गाड़ी दिखायी दी, उसमे सवार लोगों की भंगिमाएं देख कर लगा कुछ तो है? सिकंदर ने गाड़ी उस ओर दौड़ा दी, दूसरी गाडी में सवार लोगों ने इशारों में हमें शांत रहने को कहा और बताया शेर है, वहाँ पहुंचकर हमें भी एक शेर दिखायी दिया, ऊँची घास के बीच वो अपनी मस्त चाल में दूसरी तरफ चला जा रहा था. दूसरी गाड़ी में कोई फोटोग्राफर नहीं था, वो लोग दूरबीन और नंगी आखों से ही शेर को देखकर खुश थे. हम अपने कैमरों से निशाना साधने लगे,  कुछ नहीं तो शेर का पिछवाड़ा ही सही. तभी राहुल और सिकंदर ने आँखों-आँखों में बात की और हमारी गाड़ी उलटी ही दौड़ पड़ी, हम गिरते-गिरते बचे इसके पहले कि हम कुछ कहते राहुल ने कहा हमें मालूम है ये कहाँ जा रहा है? आप कैमरे सम्हाल कर, जोर से पकड़ कर बैठो, वहीँ फोटो खीचना। सिंकंदर ने तेज़ी से गाड़ी बैक की और उसने जंगल के उबड़-खाबड़ और अंधे मोड़ों वाले रास्ते में अंधाधुंध गाड़ी दौड़ना शुरू कर दिया। उसने एक लम्बा गोल चक्कर काटा और फिर झील की तरफ गाड़ी मोड़ दी, दलदली ज़मीन पर गाड़ी दौड़ाते हुए उसने सामने इशारा किया, राहुल ने कहा देखिये नज़ारा...... आखिरकार जो हम चाहते थे वो हमारे सामने था।
हमारे सामने सिर्फ एक शेर ही नहीं था, हमारी आँखों को तृप्त करने के लिए मानो समय ने, दृश्यों की एक श्रृंखला PAUSE कर रखी थी और हमारे वहाँ पहुंचते ही उसका PLAY बटन ON हो गया. लगभग खुले मैदान में बायीं ओर से शाही चाल में आता शेर, सामने गौरों का झुण्ड उसके पीछे घबराता लड़खड़ाता एक पाड़ा (गौर का बच्चा), दाहिनी ओर चीतलों का एक बहुत बड़ा झुण्ड। शेर को बढ़ता देख अचानक जानवरों में खलबली मच गयी, भागमभाग शुरू हो गयी, जिसका जिस ओर मुंह उठा वो उस तरफ ही दौड़ पड़ा. गौरों का मुखिया खतरा भांप शेर और पाड़े के बीच आ खड़ा हुआ, उसकी ओट में पाड़ा अपने झुण्ड के बीच जा घुसा, चीतल भी उन्हीं के साथ हो लिये। शेर जैसे ही अपना रास्ता बदलता विशालकाय गौर उसके सामने आ खड़ा होता। शेर दिशा बदल आगे बढ़ चला तो गौर उसके पीछे हो लिया, उस तरफ अब शेर के सामने चीतल थे, उनमें चीख-पुकार के साथ भगदड़ मच गयी। तब तक दो गाड़ियां और वहाँ पहुंच गयीं. इससे शेर बिना किसी को छेड़े, जंगल में ओझल हो गया. हमने भी अपने कैमरे नीचे कर लिए. राहुल ने बताया ये माधुरी का बच्चा है. फिर कहा सर देर हो गयी है तेज़ी से वापस जाना होगा। हम तीनों ने एक दूसरे को देखा, सबकी नाचती आँखें कह रही थी कि यहीं जश्न हो जाए, मैं शुरू होता तो वहीँ नाच गाना शुरू हो जाता। हमने उछल-कूद कर रहे अपने दिलों को सम्हाला और सत्या ने कहा 120 में दौड़ाओ। इति.
कमल दुबे।