वर्ष २०१० में संतोष कुमार जी के साथ, लेह प्रवास से लौटते समय लेह-मनाली मार्ग में बारलाचा ला के बाद, तंगलंग ला के आगे २४ जून की रात हमने एक टेंट में गुजारी. -2 तापमान था. उसके बाद 25 जून को रोहतांग की और बढ़ते हुए शाम को दारच्चा के पहले एक सज्जन अपने दो नन्हे मुन्नों के साथ बुलेट में साजो सामान के साथ दिखे. बच्चों को देख हम हैरत में पड़ गए. रास्ते में एक पहाड़ी नाला पार करते समय हमने देखा कि नाले के पहले उन्होंने अपनी बुलेट को रोक, बच्चों को एक-एक कर गोद में उठा कर पैदल नाला पार कर, दूसरी ओर छोड़ वापस आकर बुलेट स्टार्ट कर नाला पार किया. समझ में आया कि वो एहतियातन ऐसा कर रहे हैं क्योंकि उस दुर्गम क्षेत्र में जहां नालों में गोल-गोल पत्थर होते हैं, वहाँ दो पहिया वाहनों के पलटने का पूरा अंदेशा रहता है( हमने 40 % को पलटते देखा).
थोड़ी दूर पर फिर एक नाला आया, इस बार हम उनके पीछे थे. उन्होंने हम से सहायता मांगी कि हम उनके बच्चों को कार से नाला पार करा दें, हम सहर्ष तैयार हो गये. इसी बहाने उनसे बात हो गयी. पता चला कि ये श्री अजीत राय हैं, कोलकाता के रहने वाले हैं, भारतीय वायुसेना में हैं ऑर अपने शौक के कारण दिल्ली से बुलेट किराये पर ले, बच्चों(बेटी चिंगू, बेटा सिद्धांत) के साथ हिमालय की सैर कर रहें हैं.
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