गुरुवार, 18 अगस्त 2011

मैं अण्णा!

सोलह अगस्त के बाद अन्ना होने के मायने बदल गए हैं. "मैं अन्ना का" नारा भी स्वस्फूर्त हो गया है.
बचपन से सुनते आये हैं "हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा"?
आज कल्पना कर रहा हूँ- "जब हर शाख पे एक अन्ना होगा, रंग ए हिन्दुस्तां क्या होगा?

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