बुधवार, 15 दिसंबर 2010

जय बजरंगबली!

कल शाम बजरंगबली के एक मंदिर के पास मैं जाम में फंस गया. पता चला लंगर चल रहा है. टेंट हॉउस की टेबल लगी थी, पास ही बड़े-बड़े गंज रखे थे जिसमें मटर पनीर कि सब्जी भरी थी, बगल में एक बड़ी सी कढाई में पूरियां तली जा रही थी. सरक-सरक कर निकलते हुए मैंने पूछ लिया कि कितना खर्च हो रहा है? एक नौजवान ने बताया कि सात-आठ हज़ार की सब्जी पड़ रही है  और पूरी के लिए सौ किलो आटा, तेल व बनवाई का खर्चा अलग. मैंने फिर पूछ ही लिया किसने, किस ख़ुशी में लंगर खोला है? मेरे हाथ में एक दोना पकडाते हुए जवाब आया भैया आप पूरी सब्जी खाओ और बोलो जय बजरंगबली! बाकी बातों से आप का क्या लेना देना? स्कूटर घिसटते हुए खाना मुश्किल था, सो कहा गया गाडी खड़ी कर आराम से बैठ कर खा लीजिये, चारों तरफ कुर्सियां  पड़ी हुई हैं. खैर मैंने दोना पन्नी में रखवा लिया और आगे बढ़ते-बढ़ते फिर पूछा किसी की कोई मन्नत थी क्या?
अबकी बार जवाब कान में आया ऐसा ही समझ लीजिये, कल भाई का सट्टे में नंबर लगा और बड़ी रकम हाथ लगी है, उसमे से कुछ पैसों से ये लंगर खोला गया है ताकि भविष्य में भी हनुमान जी कि कृपा बनी रहे!
मेरे खुले हुए मुह से निकल ही पडा जय बजरंगबली!
कमल दुबे.

2 टिप्‍पणियां: