रविवार, 21 नवंबर 2010

चला गया पुंगी बजाने वाला..

ब्लिट्ज फेम, इंटरनॅशनल मीडिया फाउन्डेशन के अध्यक्ष  जी डी गोयल ने एक लम्बी बीमारी के बाद गत ११ नवम्बर को महाराष्ट्र के औरन्गाबाद के एक अस्पताल में अंतिम साँसें ली और हमेशा के लिए खामोशी की चादर ओढ़ ली. बीमारी की अवस्था में उनके औरन्गाबाद में रहने वाले पुत्र उन्हें अपने साथ ले गए थे.
पत्रकारिता का उनका अपना एक अंदाज़ था जिसकी वजह से वो काफी चर्चित रहे. मध्यप्रदेश निवासी स्व. श्री गोयल, दिल्लीवासी हो गए थे. लेकिन हिन्दुस्तान का शायद ही ऐसा कोई प्रान्त होगा जहां उनको जानने वाला कोई न हो? वो जहां जाते अपना एक नेटवर्क खड़ा कर लेते थे.  
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद जब वो रायपुर आये तो वहीँ कैम्प बना लिया और अजय शर्मा के साथ मिलकर द कोल टाइम्स निकालने लगे. इसी दौरान मेरा भी उनसे मिलना हुआ और इस कदर मिलना हुआ कि वो जब भी बिलासपुर संभाग के दौरे पर निकलते तो बिलासपुर से मुझे साथ में ले लेते. सुबह पूडी-सब्जी खा कर निकलने का मेरी पत्नी मीनू का आग्रह वो सहर्ष स्वीकारते और फिर दौरों का अनथक सिलसिला शुरू हो जाता. ६० के ऊपर होने के बाद भी अपनी फिएट में वो दिल्ली से अकेले ही छत्तीसगढ़ आ जाते थे.
पुंगी बजाना उनका तकियाकलाम था. कोल टाइम्स के दौरान उनके साथ काम करने का एक अलग ही अनुभव रहा, एक बार उनके सामने एक बड़ी कंपनी के अधिकारियों से मेरी जम कर कहासुनी हो गयी तो उन्होंने सबके सामने मुझे फटकार लगाई,  कहा मुंह से क्यों हल्ला मचा रहे हो, तुम्हारे पास कलम है उससे हल्ला मचाओ, मुझे लिख कर दो और देखो मैं इनकी कैसे पुंगी बजाता हूँ? उन्होंने पुंगी बजाई भी. पुंगी बजाने का ये शगल अनेक अर्थों में हमेशा उनके साथ रहा.
रायपुर में अजय शर्मा जी की सन्गत का असर उन पर कुछ ऐसा पडा कि उनका झुकाव इलेक्ट्रानिक मीडिया कि ओर हो गया. छत्तीसगढ़ के बाद वो उत्तराखंड में भी रहे वहाँ से उनके बुलावे हमेशा आते रहे.  दिल्ली में उन्होंने इंटरनॅशनल मीडिया फाउन्डेशन की स्थापना की और किसी न किसी कार्यक्रम के बहाने दिल्ली के इंटरनॅशनल सेंटर में वो देश भर के पत्रकारों को हर साल बुलाते रहते. कुछ समय पहले तक वो जैन टीवी में रविवार दोपहर १२ बजे का सेगमेंट लेकर अर्थ शास्त्रियों के साथ चिंतन करते नज़र आते थे.
पिछले सप्ताह जब अजय भैया ने उनके निधन का समाचार दिया तो उनके साथ बिताये कई लम्हे एक साथ याद आ गए. अफ़सोस इस बात का कि अपने पिछले दिल्ली प्रवास में मैं उनसे नहीं मिल पाया. भगवान् उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे. इति.
कमल दुबे.

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

3 G gaaliyaan!

काम कम और हल्ला ज्यादा! इसके क्या नतीजे होते हैं? इन दिनों मैं स्वयम इनको भुगत रहा हूँ. दरअसल अप्रेल के महीने में जब मेरा मल्टीमीडिया मोबाइल हैण्डसेट चोरी हो गया तो मैंने जून में सोनी इर्रिक्कशन का ३जी सेट लिया, फिर जब बाहर गया तो उस सेट में इंटरनेट कि स्पीड देख मैं दंग रह गया और वापस बिलासपुर आ कर मैंने साथियों के बीच इसकी जम कर चर्चा की. जुलाई में उक्त हैण्डसेट भी चोरी हो गया. फिर मैंने नोकिया सी ६  लिया जो पिछले महीने ही मुझे मिला था. उसके भी ३ जी होने कि खूब चर्चा हुई. नया मोबाइल चलता कम और हैंग ज्यादा होता था सो मैंने उसे मोबाइल स्टोर में वापस पटक दिया. फिर पिछले दिनों जब मेरा बेटा स्कूल टूर में जा रहा था तो मैंने उसे एक चायनीज सेट दिया लेकिन ध्यान रखा कि वो भी ३जी हो. बेटा जब वापस आया तो उसने बताया कि उसका सेट दो कौड़ी का है उसमे ३जी काम नहीं करता. मैंने उक्त सेट भी स्टोर में पटक दिया. अब मेरे पास मेरा पुराना हथौड़ा छाप सेट ही है जो काम आ रहा है.
अब पिछले दो तीन दिनों से बिलासपुर में दो कंपनियों ने एक साथ ३जी सेवाएँ शुरू कर दी हैं. मेरे कई परिचित ३जी सेवा टेस्ट करने या एक्टिवेट कराने में लगे हैं. उनसे पूछा जाता है कि कोई ऐसा नंबर बताओ जिसमे ३जी चालू हो तो आपको वीडिओ काल करके दिखाते हैं! आँख मूँद के मेरे साथी मेरा नंबर बता रहे हैं और उनके वीडिओ काल रीजेक्ट हो रहें हैं, क्योंकि मेरे हैण्ड सेट किस हाल में हैं इसकी चर्चा मैं पहले ही कर चुका हूँ, और उसके बाद शुरू हो रहा है ३जी गालियों का सिलसिला......
कमल दुबे.