अब जबकि फोन खिलौना हो गया है, निजी कंपनियों ने ग्राहक सेवा के मायने बदल कर रख दिए हैं बावजूद इसके एक नई समस्या पैदा हो गई है. अगर आपके यहाँ एयरटेल (निजी कंपनी) का फोन लगा है तो आप भी इससे रूबरू हो चुके होंगे, अगर नहीं तो तैयार हो जाइए. ये समस्या तब उपजती है जब आपका फोन खराब हो जाता है और उसकी शिकायत दर्ज करानी होती है. सबसे पहले अपने ऐसे परिचित को खोजना पड़ता है जिसके यहाँ उसी कंपनी का फोन हो, उनके यहाँ अनुमति लेने के बाद 198 डायल कीजिये..... कुछ सेकेण्ड संगीत सुनिए, फिर आवाज़ आएगी +ये नंबर शिकायत दर्ज कराने के लिए है, अगर आपको बिल या अन्य सेवाओं सम्बंधित कोई जानकारी चाहिए तो कृपया 121 डायल करें+... फिर संगीत.... उसके बाद आपको उस फोन के बिल का हाल सुना दिया जाएगा, संगीत... आवाज़ ..अंग्रेजी के लिए एक... हिंदी के लिए दो डायल करें संगीत..... आवाज़... इसी नंबर की शिकायत के लिए एक, अन्य नंबर के लिए दो डायल करें, संगीत.... फिर कुछ इस तरह के अनुरोध ... लाइन में खराबी के लिए एक, इंस्ट्रूमेंट में खराबी के लिए दो, फोन पूरी तरह से बंद है तो तीन डायल करें..... हमारे अधिकारी से बात करने के लिए नौ डायल करें, फिर संगीत.. फोन से ज़रा नज़र हटा कर देखेंगे तो पता चलेगा कि तीन मिनट से ऊपर हो चुके हैं और फोन का मालिक आपको घूर रहा है, आप असहज हो जातें हैं, उधर फोन पर आवाज़ आ रही है कि आपकी काल हमारे अधिकारी के पास ट्रांसफर की जा रही है..... जो रिकार्ड भी की जा सकती है..... आपका काल हमारे लिए महत्वपूर्ण है कृपया लाइन पर रहें.... पांच मिनट हो चुके हैं अब फोन मालिक को शक होने लगता है कि ये शिकायत का नाम ले कर भविष्यवाणी तो नहीं सुन रहा है? जिसका बिल तगड़ा आता है.... और फोन कट जाता है... शिकायत दर्ज नहीं हुई.. फिर वही सिलसिला.. वही दोहराव... अंत में अधिकारी हाज़िर होतें हैं... नमस्कार मैं फलां बोल रहा/रही हूँ मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ.... आप अपना नंबर बताएँगे... वहाँ से एस टी डी कोड पूछा जाएगा, फिर आपका नाम, पता, इ मेल आई डी, मोबाइल नंबर की जानकारी ली जायेगी, फिर पूछ जाएगा क्या आपने अपना इंस्ट्रूमेंट चेक किया है? लाइन चेक की? डिब्बी देखी आदि-आदि... जब तक आप आपनी खोपड़ी के बाल नहीं नोचने लगेंगे तब-तक वहां से पूछताछ जारी रहेगी... और अंत में कम्प्लेंट नंबर इतना लंबा बताया जाएगा कि याद रखना मुश्किल. एक शिकायत दर्ज कराने में इतना समय, अब तो ये हाल है कि किसी के यहाँ आप पहुँच कर कहेंगे कि फोन की शिकायत करनी है तो हो सकता है कि जवाब आये.. अरे मेरा भी फोन खराब है....?
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हाथ में मोबाइल लेकर घूम रही नई पीढ़ी को फोन पाने का वो दर्द नहीं मालूम है जो हमारी उम्र ने झेला है. नंबर लगाने के बाद लंबा इन्तजार, लाइनमैन देवदूत लगता था, दूर से उसे आते देख लपक पड़ते थे हमारा नंबर आया क्या? मायूसी ही हाथ लगा करती थी. फिर सांसद कोटे के लिए प्रयास.... और अंत में ओ वाय टी स्कीम में साढ़े सात हज़ार जमा करने के हफ्ते भर बाद दो लोग आये और घर की बालकनी में लोहे का एंगल ठोक, उसमे चीनी-मिटटी की गुम्बदनुमा आकृति लगा, चाय-नाश्ता कर विदा हो गए. तय हो गया कि फोन लगने वाला है. अडोस-पड़ोस से जलने कि बू के साथ बधाई सन्देश आने लगे. अब इन्तजार था उन तारों का जिन पर चल कर लाइन आती, फिर दो तीन दिन गुजर गए, देवदूत को पकड़ा तो उसने बताया कि आपके घर के पास के खम्बे में लगी डी बी में जगह नहीं है, साहब से बोल कर लंबा तार दिलवाइए. एक और कवायद हुई तब जा के फोन लगा. ग्राहक सेवा का हाल सरकारी ही था, एस टी डी सुविधा तब शुरू नहीं हुई थी, दूसरे शहर बात करनी हो तो ट्रंक बुक करो उसके बाद सबकुछ छोड़ के फोन के पास घंटो बैठे रहो न जाने कब काल लग जाए, विपत्ति में चार गुना रेट पर लाइटनिंग काल किये जाते थे.