16 फ़रवरी, बुधवार की शाम ६ बजे ताला महोत्सव का उदघाटन था, उस दिन अन्य कार्यक्रमों के साथ चंदैनी-गोंदा प्रहसन होना था, सो मित्रों के साथ हम भी मनियारी नदी के तट पर स्थित देवरानी-जेठानी मंदिर शाम से पहुँच गए. शहर से कुछ मित्रों का फोन आया तो उन्हें भी वहीँ बुलवा लिया.
लेकिन उस दिन चंदैनी- गोंदा देखना नहीं बदा था, नेता लोग रात ९:३० तक नहीं आये सो समारोह का उदघाटन तब तक नहीं हुआ. सबने हिसाब लगाया कि यहाँ रात का दो बजना तय है. कुछ मित्रों के बच्चों के दूसरे दिन पेपर्स थे, उन्होंने जल्दी जाने की बात कही, इस पर सब उठ कर वहाँ से निकल लिए.
रास्ते में शशि भाऊ ने कहा कि कल सुबह जब बच्चों को उठाऊंगा तो उन्हें क्या नहीं करना चाहिए? में एक नई बात बताऊंगा, "ताला महोत्सव देखने कभी नहीं जाना"
bahut achchhi tippani ki aapne tala mahotsav par...
जवाब देंहटाएंअभी हाल ही भोपाल में हमारे साथ ऐसा ही हादसा हुआ. राजा भोजपाल सहस्र जयंती पर शिवमणि व सुखविंदर का वादन-गायन कार्यक्रम था. कार्यक्रम की शुरूआत भाषणबाजी से शुरु हुई तो वो खत्म होने का नाम नहीं लिया और बीच-बीच में भरती के कार्यक्रम चलते रहे.
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